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प्रयागराज माघ मेला 2026 जानिए कब शुरू होगा आस्था का सबसे बड़ा महापर्व

On: October 23, 2025 9:25 AM
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प्रयागराज माघ मेला 2026

प्रयागराज माघ मेला 2026 इस बार 3 जनवरी से 15 फरवरी तक आयोजित होगा। जानिए माघ मेले के प्रमुख स्नान पर्व, तैयारी व्यवस्था, और आस्था का यह महापर्व क्यों है खास।

प्रयागराज माघ मेला 2026 माघ मेले का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व

#प्रयागराज माघ मेला 2026 का आध्यात्मिक महत्व इस बात में है कि संगम के पवित्र जल में स्नान कर जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलती है। सांस्कृतिक रूप से यह मेला भारत की सनातन संस्कृति, भक्ति और आस्था का जीवंत उत्सव है, जहां भक्त अपनी धार्मिक आस्था और परंपराओं को नमन करते हैं।

माघ मेला 2026 की प्रारंभिक तिथि और अवधि

प्रयागराज माघ मेला 2026
#प्रयागराज माघ मेला 2026

माघ मेला 2026 प्रयागराज के संगम तट पर 3 जनवरी 2026 से शुरू होगा और 15 फरवरी 2026 तक चलेगा। माघ मेला लगभग 44 दिनों तक चलता है, जिसमें छह प्रमुख स्नान पर्व होते हैं।

प्रमुख स्नान पर्व और उनकी तिथियां

माघ मेला के दौरान पौष पूर्णिमा (3 जनवरी), मकर संक्रांति (14 जनवरी), मौनी अमावस्या (18 जनवरी), वसंत पंचमी (23 जनवरी), माघी पूर्णिमा (1 फरवरी), और महाशिवरात्रि (15 फरवरी) जैसे बड़े स्नान पर्व आयोजित होते हैं।

मेले की भव्य तैयारी और आयोजन

प्रशासन ने माघ मेले के लिए 42 करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत किया है और सुरक्षा, स्वच्छता, यातायात एवं आवास सुविधाओं का विशेष प्रबंध किया जाएगा ताकि श्रद्धालुओं को सहज और सुरक्षित अनुभव मिल सके।

माघ मेले में धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

यह मेला धार्मिक आस्था का महापर्व है जहाँ लाखों श्रद्धालु त्रिवेणी संगम के पवित्र जल में स्नान कर पापों से मुक्ति पाने का प्रयास करते हैं। यह आयोजन सनातन संस्कृति और भारतीय परंपराओं का जीवंत रूप है।

प्रशासनिक नियम और साधु-संतों की मांगें

साधु-संतों ने माघ मेले में केवल उन लोगों को प्रवेश देने और ठेका सौंपने की मांग की है

जो सनातन धर्म का सम्मान करते हों,

ताकि मेले की धार्मिक पवित्रता बनी रहे।

श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण निर्देश

श्रद्धालुओं को सलाह दी गई है कि वे मेले के नियमों का पालन करें, सफाई और सुरक्षा 

का ध्यान रखें तथा आध्यात्मिक भावना

के साथ मेले का हिस्सा बनें।

माघ मेले का सांस्कृतिक उत्सव और समापन

माघ मेला महाशिवरात्रि के स्नान के साथ समाप्त होता है, जिसमें भक्तों द्वारा भक्ति

और साधना के साथ अंतिम स्नान किया जाता है,

जिससे यह पर्व आध्यात्मिक तृप्ति प्रदान करता है।

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