दिल्ली क्लाउड सीडिंग IIT कानपुर के क्लाउड सीडिंग ट्रायल विफल रहे, क्योंकि बादलों में नमी बेहद कम थी और बारिश नहीं हुई। विशेषज्ञों ने बताया कि अगले प्रयासों के लिए पर्याप्त नमी जरूरी है ताकि प्रदूषण नियंत्रण में क्लाउड सीडिंग मददगार हो सके।
दिल्ली क्लाउड सीडिंग IIT दिल्ली कानपुर क्लाउड सीडिंग ट्रायल विफल, बारिश क्यों नहीं हुई
IIT कानपुर द्वारा आयोजित क्लाउड सीडिंग ट्रायल विफल रहा क्योंकि बादलों में नमी की मात्रा केवल 10-15% थी, जो बारिश के लिए पर्याप्त नहीं थी। विशेषज्ञों ने बताया कि तभी सफल हो सकता है जब बादलों में कम से कम 50% नमी हो।
क्लाउड सीडिंग क्या है

क्लाउड सीडिंग एक तकनीक है जिसमें बादलों में सिल्वर आयोडाइड और सोडियम क्लोराइड जैसे यौगिक छिड़के जाते हैं, ताकि कृत्रिम वर्षा कर हवा को साफ किया जा सके।
दिल्ली में क्लाउड सीडिंग क्यों शुरू हुई
दिल्ली की बढ़ती वायु प्रदूषण समस्या को कम करने के लिए दिल्ली सरकार ने IIT कानपुर और IIT के साथ मिलकर किया।
ट्रायल के दौरान क्या हुआ
28 अक्टूबर को दो विमान दिल्ली और एनसीआर के बुराड़ी, मयूर विहार, करोल
बाग आदि क्षेत्रों में उड़ान भरकर क्लाउड सीडिंग
की कोशिश की गई, लेकिन बारिश नहीं हुई।
IIT कानपुर ने क्या बताया
IIT कानपुर के निदेशक प्रो. मणिन्द्र अग्रवाल के अनुसार बादलों में नमी
केवल 10-15 प्रतिशत थी, जो कृत्रिम बारिश के लिए बहुत कम थी।
वैज्ञानिक कारण क्या हैं
बारिश के लिए बादलों में कम से कम 50 प्रतिशत नमी होनी चाहिए,
लेकिन दिल्ली के बादलों में इतनी नमी नहीं थी,
जिससे क्लाउड सीडिंग असफल रही।
खर्च और अनुभव
क्लाउड सीडिंग के लिए कई करोड़ रुपये खर्च किए गए।
हालांकि बारिश नहीं हुई,
लेकिन इस प्रयोग से प्रदूषण में 6-10% तक कमी का
डेटा मिला है जो भविष्य के प्रयासों के लिए उपयोगी होगा।
भविष्य की योजनाएं
सरकार आगामी मौसम में नमी स्तर बेहतर होने पर पुनः क्लाउड सीडिंग
परीक्षण करेगी जिससे बेहतर परिणाम मिलने की उम्मीद है।
 






