दक्षिण भारतीय दुल्हनों की शान गुट्टापुसालु हार की अनोखी कहानी जानें – 18वीं सदी के मोती उद्योग से जन्मा, विजयनगर साम्राज्य की राजसी विरासत का प्रतीक। समृद्धि और शुभता का यह हार आज भी ब्राइड्स की पहली पसंद।
दक्षिण भारतीय दुल्हनों की शान गुट्टापुसालु का नाम और डिजाइन
दक्षिण भारतीय दुल्हनों की शान गुट्टापुसालु का नाम तेलुगु ‘गुट्टा’ (झुंड) और ‘पुसालू’ (मोती) से बना, मोतियों की झालर जैसा अनोखा डिजाइन। अर्धचंद्र, फूल मोटिफ्स और लटकते मोतियों के गुच्छों से सजा सोने का यह हार शाही चमक बिखेरता है।
गुट्टापुसालु का नाम और डिजाइन

गुट्टापुसालु हार तेलुगु शब्दों ‘गुट्टा’ (झुंड) और ‘पुसालू’ (मोती) से बना नाम रखता है। इसकी मोतियों की झुमकी जैसी झालर देखने में छोटे मोतियों की मछलियों जैसी लगती है। यह डिजाइन दक्षिण भारत की पारंपरिक जूलरी की नायाब कारीगरी दर्शाता है।
आंध्र प्रदेश में जन्म
यह नेकलेस सबसे पहले आंध्र प्रदेश के कोरमंडल तट पर 18वीं सदी में विकसित हुआ। स्थानीय पर्ल फिशिंग इंडस्ट्री ने इसके निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मोतियों की प्रचुरता ने इसे अनोखा रूप दिया।
विजयनगर साम्राज्य का प्रभाव
गुट्टापुसालु का डिजाइन विजयनगर साम्राज्य के राजसी आभूषणों से प्रेरित माना जाता है। 1336-1672 तक चले इस साम्राज्य ने दक्षिण भारतीय आभूषण शैली को समृद्ध किया। इसकी शाही विरासत आज भी झलकती है।
मोतियों की चमकदार कारीगरी
छोटे-छोटे काले मोतियों से सजी यह झालरदार नेकलेस चमक से आकर्षित करती है। पारंपरिक कारीगरों की निपुणता इसे विशेष बनाती है। हर मोती सावधानी से जोड़ा जाता है।
दुल्हनों के लिए शुभ प्रतीक
परंपरागत रूप से दुल्हनें विवाह के दिन इसे पहनती हैं।
समृद्धि और शुभता का प्रतीक होने से इसे शुभ माना जाता है।
दक्षिण भारतीय शादियों में इसका विशेष स्थान है।
आधुनिक लोकप्रियता
आजकल गुट्टापुसालु हर ब्राइड की पहली पसंद बन रहा है।
सोशल मीडिया पर इसके डिजाइन वायरल हो रहे हैं।
आधुनिक ब्राइड्स पारंपरिक और कंटेम्परेरी लुक के लिए चुन रही हैं।
सांस्कृतिक महत्व
दक्षिण भारत की विविध संस्कृति में यह हार अलग पहचान रखता है।
विजयनगर की विरासत को जीवंत रखते हुए यह पीढ़ियों से चला आ रहा है।
इसे पहनना सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है।





